Wednesday, October 14, 2009

सपने और अस्तित्व

कल रात
मुझे बहुत ज्यादा भूख लगी
परेशानी ने हद कर डाली

कुछ ढूँढा पर खाना तोह
जैसे यहाँ दुर्लभ ही है

पर फिर मुझे याद आया की
मेरे पास कुछ धुवें की डंडियाँ पड़ी है
उनमे से एक उठा ली और जला ली

भूख बहुत जल्दी ही शांत हो गयी
पर शायाद कुदरत और ही कुछ चाहती थी
पर थोडी ही देर बाद
मुझे और भोख लगी,

लगता है प्रकृति को पता है शैतान कैसे बनाये जाते हैं
पर में तोह इस सच से बेजार था

क्या करता सोचा इससे काम नही बनने वाला
तोह सोचा क्या किया जाए
शायद समय ज्यादा हो और नींद ना आती हो
तोह इंसान पागल हो जाए
नही शायद ही इंसान नही जानवर भी

पर हल तोह आवश्यक सा था
सो नींद लाने की कोशिश में खुली आंखों से
एक सपना देखना चालू किया

सपने में वोह सब मुझे मिल सकता था
जो कभी इच्छित था
यह प्रयत्न भी विफल रहा
और मुझे ना नींद आई ना ही क्षुंधा शांत हुई

पर पता नही क्या हुवा जब सुबह

मेरे अलारम ने मेरी नींद खोली
तोह समझ आया की
मैंने एक सपने में सपना देखा
जिसमे में वोह नही देख पाया
जो मुझे सपने में देखना था

मैंने वोह नही देखा
जो मैं अपने लिए अच्छा समझता था
मैंने वोह देखा जो मेरे लिए सबसे अच्छा हो सकता था
पर सपने का सपना तोह सपना ही है ना

शायद आस्तित्व हमारे निमित्त को आरक्षित कर देता हें
और निमित्त सपनो को

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