एक जंगली की कहानी सुनाता हूँ
थोडी बड़ी है
जंगल में जहाँ शेर भालू
और चीते रहते हैं
जहाँ कबाड़ भी नही होता
सिर्फ़ घास और पत्थर होते है, वहां
एक जंगली रहा करता था
उस जंगली ने, अकेले ही
उनके साथ रहने की आदत डाल ली
पर अचानक से वो अँधा हो गया
सोचो एक अकेला इंसान
अँधा पर अकेला
और सबसे, सबसे जरूरी जंगली
उसने हाथ से ढूंढ कर कुछ घास खायी
और जब उसके हाथ पर कुछ गर्मी का एहसास हुआ
तो उसने आग की खोज भी कर डाली
पर ऐसे जंगली कम ही तो होते हैं
उसने पत्थर, घास और आग,
और बहुत सारी और चीजे,
जिन पर उसे विश्वास था
कबाड़ को छोड़ कर
क्योंकि जंगल में कबाड़ नही होता
उन्हें जोड़ कर एक टाइम मशीन बनाई
वो फिर उस टाइम मशीन से इंसानों
के बीच आ पहुँचा
पर फितरत से मजबूर वो
जंगली, यहाँ भी ...
क्योंकि उसे सिर्फ़ अपने कायदों
पर विश्वास था
उन भूखे लोगों को
जो सिर्फ़ दिल पर एतबार करते है
या कम से कम दिखाते तो हैं
उन लोगो के ईश्वर को त्याग कर
अंगीठी में कोयला डाल कर
एक स्याह रात में सर्दी में बेठा रहा
सोचता था की उसे किसी ने बताया है की
यहाँ लोग प्यार भी कर सकते हैं
उस भूलावे में वो आ गया
पर वो जंगली फितरत से मजबूर
दिमाग पर ज्यादा भारोसा करता था
यहाँ भी....
हाँ यहाँ भी उसने मजे से जिन्दा
रहने का तरीका निकाला ही लिया
और उन सारे इंसानों से आगे निकल गया
जो कबाड़ में, भगवन में, और प्यार में विश्वास करते थे
पर टाइम मशीन पर नही
क्योंकि टाइम मशीन तो जंगली ने बनाई ना
वो जंगली ना न्यूटन था ना आइनस्टाइन था ना मैं
वो तो बुध, महात्मा गाँधी और मैं थे......
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Tuesday, September 22, 2009
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