Sunday, July 11, 2021

गुलामी की परिभाषा


 गुलामी की अलग अलग परिभाषाएं  होती हैं 


कभी गले से निकलती मातम की चीख से कहानी शुरू होती है 

नीले पड़े एक सर्द जिस्म से 

कहानियों के रेतीले बवंडर 

जिन पर बर्फ की चादर चढ़ चुकी है 


जहाँ थमा दिया जाता है अनिश्चितता का प्रकोप 

पुराने लकड़ी और पत्थर के घरों में 

लोग चुनते हैं उम्मीद और 

ललक होती है जिन्दा रहकर 

आज़ादी तलाशने की 


कभी कहानी वहां से शुरू होती है 

जहाँ से ठन्डे नीले आसमान के नीचे 

कुछ बच्चे पुस्तक उठाये 

चीड़ के दरख्तों के नीचे से गुजरते हैं 


तब नहीं सिखाया जाता साम्यवाद या पूंजीवाद 

कुछ प्रकृति को समझने की कोशिश होती है 

उन एब्स्ट्रैक्ट संकेतों से 

पर लोग कुछ सीखते और हैं 

और जकड़ जाते हैं भावनात्मक बेड़ियों में 

निकलने की कोई उम्मीद, कोई गुंजाइश  नहीं होती 

पर ललक होती है जिन्दा रहकर 

आज़ादी तलाशने की 


 एक बार तो कहानी शुरू हुई थी 

एक पथरीली सीढ़ी पर चढ़कर 

जहाँ अनायास ही चढ़ते चढ़ते 

एक पत्थर की सिल्ली पर 

जहाँ से सीढ़ी खिसक चुकी थी 

और आगे कुछ नहीं नहीं दीखता है 


तब सिर्फ खड़े होकर शुन्य को ताकना 

एक विकल्प था 

ऐसी जगहों पर मनुष्य सामान्यतः 

परिस्थितिवश ही पहुँचते हैं 

जहाँ दुनिया को समाज को उम्मीद होती है प्रगति की 

और जीव को ललक होती है जिन्दा रहकर 

आज़ादी तलाशने की 


कुछ कहानियां शुरू होती है विफलता से 

या फिर विलगाव से 

जब एक झरने के किनारे से जाती हुई सड़क पर 

कुछ किताबें पढ़ी जाती हैं 

और अकेले बैठ कर पी जाती है आधा किलो चाय 


चुनाव मुश्किल हो जाता जब सवाल 

निर्वाण और सामृध्य का हो 

ऐसे सवालों पर सबकी नज़र होती है 

कई बार लोग जवाब में बुद्ध भी बन जाते हैं 

शायद मनुष्य को ललक होती है जिन्दा रहकर 

आज़ादी तलाशने की 


कुछ कहानियां शुरू होती हैं 

बस शुरू होने के लिए 

जहाँ सार और प्रासंगिकता का कोई औचित्य नहीं 

परन्तु इसमें समरसता है 


कुछ कहानियों में निंदा है 

कुछ कहानियों में समृद्धि है 

कुछ में अहंकार 

कुछ में ख्याति 

कुछ में अपराध 

तो कुछ में अपराधबोध 

कुछ में अज्ञानता हैं 

तो कुछ में खुशफहमी है बुद्धत्व की 


और ललक है जिन्दा रहकर 

आज़ादी तलाशने की 



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