गुलामी की अलग अलग परिभाषाएं होती हैं
कभी गले से निकलती मातम की चीख से कहानी शुरू होती है
नीले पड़े एक सर्द जिस्म से
कहानियों के रेतीले बवंडर
जिन पर बर्फ की चादर चढ़ चुकी है
जहाँ थमा दिया जाता है अनिश्चितता का प्रकोप
पुराने लकड़ी और पत्थर के घरों में
लोग चुनते हैं उम्मीद और
ललक होती है जिन्दा रहकर
आज़ादी तलाशने की
कभी कहानी वहां से शुरू होती है
जहाँ से ठन्डे नीले आसमान के नीचे
कुछ बच्चे पुस्तक उठाये
चीड़ के दरख्तों के नीचे से गुजरते हैं
तब नहीं सिखाया जाता साम्यवाद या पूंजीवाद
कुछ प्रकृति को समझने की कोशिश होती है
उन एब्स्ट्रैक्ट संकेतों से
पर लोग कुछ सीखते और हैं
और जकड़ जाते हैं भावनात्मक बेड़ियों में
निकलने की कोई उम्मीद, कोई गुंजाइश नहीं होती
पर ललक होती है जिन्दा रहकर
आज़ादी तलाशने की
एक बार तो कहानी शुरू हुई थी
एक पथरीली सीढ़ी पर चढ़कर
जहाँ अनायास ही चढ़ते चढ़ते
एक पत्थर की सिल्ली पर
जहाँ से सीढ़ी खिसक चुकी थी
और आगे कुछ नहीं नहीं दीखता है
तब सिर्फ खड़े होकर शुन्य को ताकना
एक विकल्प था
ऐसी जगहों पर मनुष्य सामान्यतः
परिस्थितिवश ही पहुँचते हैं
जहाँ दुनिया को समाज को उम्मीद होती है प्रगति की
और जीव को ललक होती है जिन्दा रहकर
आज़ादी तलाशने की
कुछ कहानियां शुरू होती है विफलता से
या फिर विलगाव से
जब एक झरने के किनारे से जाती हुई सड़क पर
कुछ किताबें पढ़ी जाती हैं
और अकेले बैठ कर पी जाती है आधा किलो चाय
चुनाव मुश्किल हो जाता जब सवाल
निर्वाण और सामृध्य का हो
ऐसे सवालों पर सबकी नज़र होती है
कई बार लोग जवाब में बुद्ध भी बन जाते हैं
शायद मनुष्य को ललक होती है जिन्दा रहकर
आज़ादी तलाशने की
कुछ कहानियां शुरू होती हैं
बस शुरू होने के लिए
जहाँ सार और प्रासंगिकता का कोई औचित्य नहीं
परन्तु इसमें समरसता है
कुछ कहानियों में निंदा है
कुछ कहानियों में समृद्धि है
कुछ में अहंकार
कुछ में ख्याति
कुछ में अपराध
तो कुछ में अपराधबोध
कुछ में अज्ञानता हैं
तो कुछ में खुशफहमी है बुद्धत्व की
और ललक है जिन्दा रहकर
आज़ादी तलाशने की
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