Thursday, November 18, 2021

आओ दर्द का बटवारा कर ले

आओ दर्द का बटवारा कर ले 


एक संवाद संवेदनाओं को झकझोर देता है 

कहानी सुनाने और सुनने वाले 

बैठते हैं एक मेज पर 

फिर बात करते हैं 

आत्मीयता की 


हर एक मनुष्य एक स्थिति से निकला है 

वह उसे परखता है 

समझता है और फिर समझता है 

यही संवाद है और देखने का नजरिया


ऐसी ही कहानियों में 

कुछ सच्चे मन से सुनाई जाती 

हृदय को छू लेती हैं 

और हम शायद रो पड़ते हैं 


कुछ लोग रोने आते हैं, संग में  

दुसरे शहरों से 

दुसरे देशों से 

या दूसरी सभ्यताओं से 


हमारे सोचने के तरीके 

भिन्न हैं 

चरित्र भिन्न हैं 

और वेदनाएं भी भिन्न है 



यह सब की कहानी है 

एक लड़का और उसकी दोस्त 

एक मेज पर बैठकर  

वाचन कर रहें हैं वेदना का 


चाहे आप कितने भी कुटिल हो 

कितने भी आत्मसात 

यह सब की कहानी है 

और यही शायद मानवीयता भी 

Friday, October 1, 2021

कुछ लाइब्रेरी

उत्सुकता धीरे धीरे इंसान के अंदर जन्म लेती है 
मैं उस समय बड़ा हो रहा था 
किसी ने बताया के हमारे कस्बे में कुछ लाइब्रेरी हैं 
मैं कभी कभी एक लाइब्रेरी मैं जाने लगा 
शाम के समय कुछ वक्त लाइब्रेरी मैं गुजर जाता 

एक कमरे की छोटी सी लाइब्रेरी थी 
कुछ अलमारियाँ के साथ 
करीने से रखी किताबें 

उन्मे से मैंने एक की शुरूवात की 
समय का संक्षप्त इतिहास    
 किसी विदेशी लेखक का हिन्दी अनुवाद था 

कभी कभी पढ़ते पढ़ते नींद आ जाती 
तो कोई उठा दिया करता

फिर मेरा स्कूल दूर हो गया 
रास्ते मैं एक अंग्रेजों के जमाने का चर्च था 
पहाड़ की चोटी पर 
जहां से एक पगडंडी स्कूल के लिए छोटा रास्ता बनती थी 

उस चर्च को लोगों ने लाइब्रेरी बना दिया था 
उस चर्च मैं एक फौजी रहता था 
कुछ गिनी चुनी किताबें थी 
वहाँ मिली मुझे कुछ और किताबें 
जिनमे मुक्तिबोध और अज्ञेय भी थे     
कुछ प्रेमचंद की कहानिया भी थी 

स्कूल मैं कभी जल्दी जाने का मन ना करे 
या कभी जल्दी भाग आओ    
तो वो एक ठिकाना था     
ठंड मैं फौजी कभी-कभी 
क किरोसिन के स्टोव पर चाय बना देता था   

फिर मैं थोड़ा और बड़ा हुआ 
देखा कि वो पास वाली लाइब्रेरी बंद होकर 
कहीँ और चली गई 
एक खुले खूशनुमा कमरे से 
एक बंद जर्जर कमरे मैं 

अब किताबें भी पढ़ने नहीं मिलती थी 
कुछ मेरी ही उम्र के लोग 
हाँ उस लाइब्रेरीनुमा कमरे को 
एक पंचायत घर बना रहे थे 

फिर कुछ और समय के बाद वो लाइब्रेरी 
जो एक चर्च मैं थी 
उसे भी बंद कर दिया गया 
वो किताबें जहां उन्हे होना चाहिए 
वो वहाँ नहीं थी 
मन थोड़ा उदास हो गया 

हमारी मूल भावनाओं के विरुद्ध 
लाइब्रेरी भी ऑटक्रैटिक हो गई है 
लाइब्रेरी का भविष्य वो लिखते थे 
जो किताबें नहीं पढ़ते थे 

कुछ और का जिक्र कभी और     

Sunday, July 11, 2021

गुलामी की परिभाषा


 गुलामी की अलग अलग परिभाषाएं  होती हैं 


कभी गले से निकलती मातम की चीख से कहानी शुरू होती है 

नीले पड़े एक सर्द जिस्म से 

कहानियों के रेतीले बवंडर 

जिन पर बर्फ की चादर चढ़ चुकी है 


जहाँ थमा दिया जाता है अनिश्चितता का प्रकोप 

पुराने लकड़ी और पत्थर के घरों में 

लोग चुनते हैं उम्मीद और 

ललक होती है जिन्दा रहकर 

आज़ादी तलाशने की 


कभी कहानी वहां से शुरू होती है 

जहाँ से ठन्डे नीले आसमान के नीचे 

कुछ बच्चे पुस्तक उठाये 

चीड़ के दरख्तों के नीचे से गुजरते हैं 


तब नहीं सिखाया जाता साम्यवाद या पूंजीवाद 

कुछ प्रकृति को समझने की कोशिश होती है 

उन एब्स्ट्रैक्ट संकेतों से 

पर लोग कुछ सीखते और हैं 

और जकड़ जाते हैं भावनात्मक बेड़ियों में 

निकलने की कोई उम्मीद, कोई गुंजाइश  नहीं होती 

पर ललक होती है जिन्दा रहकर 

आज़ादी तलाशने की 


 एक बार तो कहानी शुरू हुई थी 

एक पथरीली सीढ़ी पर चढ़कर 

जहाँ अनायास ही चढ़ते चढ़ते 

एक पत्थर की सिल्ली पर 

जहाँ से सीढ़ी खिसक चुकी थी 

और आगे कुछ नहीं नहीं दीखता है 


तब सिर्फ खड़े होकर शुन्य को ताकना 

एक विकल्प था 

ऐसी जगहों पर मनुष्य सामान्यतः 

परिस्थितिवश ही पहुँचते हैं 

जहाँ दुनिया को समाज को उम्मीद होती है प्रगति की 

और जीव को ललक होती है जिन्दा रहकर 

आज़ादी तलाशने की 


कुछ कहानियां शुरू होती है विफलता से 

या फिर विलगाव से 

जब एक झरने के किनारे से जाती हुई सड़क पर 

कुछ किताबें पढ़ी जाती हैं 

और अकेले बैठ कर पी जाती है आधा किलो चाय 


चुनाव मुश्किल हो जाता जब सवाल 

निर्वाण और सामृध्य का हो 

ऐसे सवालों पर सबकी नज़र होती है 

कई बार लोग जवाब में बुद्ध भी बन जाते हैं 

शायद मनुष्य को ललक होती है जिन्दा रहकर 

आज़ादी तलाशने की 


कुछ कहानियां शुरू होती हैं 

बस शुरू होने के लिए 

जहाँ सार और प्रासंगिकता का कोई औचित्य नहीं 

परन्तु इसमें समरसता है 


कुछ कहानियों में निंदा है 

कुछ कहानियों में समृद्धि है 

कुछ में अहंकार 

कुछ में ख्याति 

कुछ में अपराध 

तो कुछ में अपराधबोध 

कुछ में अज्ञानता हैं 

तो कुछ में खुशफहमी है बुद्धत्व की 


और ललक है जिन्दा रहकर 

आज़ादी तलाशने की 



Wednesday, June 30, 2021

चुनाव

        बुराँस के ढुलकते छरहरे पेड़ों के बीच 

        तक़रीबन उन्नीस साल पहले एक कच्ची सड़क गुजरती थी 

        उन कच्ची पगडंडियों को,

        और कुछ पुरानी पगडंडिया जोड़ा करती थीं 

        जो तब शायद झाड़ियों से भर चुकी थीं 


        जब एक कॉपी कबाड़ में बेचने के बजाय 

        परीक्षा ख़त्म होने पर उन्हें फाड़कर,

        उनके हवाई जहाज बनाना  

        एक विलासिता थी 

        

        तब कुछ बच्चे उन झाड़ियों से भरी 

        पगडंडियों पर शायद गलती से 

        गुजर जाते थे जिन पर 

        भेड़ और बकरियों की हड्डिया पड़ी होती थीं 

        जैव उपघटन के बाद, शायद उन्हें बाघ ने खाया हो  


        सफर के सबसे अच्छे पड़ावों में 

        शायद साफ़ पानी का एक नल था 

        संस्कृत जो जुड़ा है संस्कृति से 

        वहीं से कुछ श्लोकों  का आविष्कार हुआ होगा 

        जो किसी भी पाठ्य पुस्तक में नहीं थे 

        ज्यादा कहने पर लड़ाई शायद भिक्षुओं और चार्वाकों 

        तक जा सकती है, चलिए आगे बढ़ें

    

        कुछ और बरस पहले वह श्लोक 

        कुछ मुक्ति की बातें पढ़ते थे 

        शायद मोक्ष के परे 

        फिर दूर पहाड़ी से एक बड़ा मैदान 

        दिखता था 

        

        फिर मुक्ति और उक्ति में चुनाव था 

       पर चित्त उनसे भी कुछ अलग सोच सकता है 

        उम्मीद के परे की बात थी 

        तो विचार क्रियांन्वयन पर नहीं गया 

        माया शायद पारिभाषिक रूप से भिन्न थी 

        

        कुछ शब्दों का परिभासन उसके बाद हुवा 

        इसलिए विचारों में 

        अपरिपक्वता हो सकती है 

        

        मनुष्यता या मनुष्यों की मनुष्यता 

        त्रुटिहीनता पर बल देती थी 

        शायद ऐसा मानों सब एक ही 

        तराजू पर तोले जाएँ 


        इस समय चुनाव आसान था 

        अलगाव 

        परन्तु चित्त की दुर्बाता भी हो सकती है 

        कि जब अलगाव चुनने की बात आती है 

        तो सालों बाद मन समर्पण चुनता है 

         

        पर यह सब सिर्फ मनघडंत 

        रूढ़िवादी पुरानी काल्पनिक बातें हैं 

        इसमें कुछ भी निश्छल और निर्बाध नहीं 

        इसको न्यायालय में चुनौती भी दी जा सकती है