प्रणय के सावन में जब,
मैंने अपनी इच्छाए जातई तो,
तुम कट लिए जमाने का वास्ता देकर ।
में जानता हूँ चालाक हो तुम लेकिन
पच्ताऊगे तुम
पर ये ज़माना न तुम्हे जीने देगा, ना मुझे
भीड़ बड़ी अजीब सी चीज़ है
जिसमे खोना इतना मासूम लगता है
पर इंसान, शायद कुछ अपने जैसे
इससे कतराते हैं
डर लगता है ना मेरी बाणी सुनकर
पर क्या करू सच बोलने की आदत सी पड़ गयी
जिन्दगी इतनी उदास तो नही है, फिर भी
तुम मुझे हमेशा याद आती रहोगी
क्योंकि सिर्फ़ ऐसा नही, की मैं तुम्हे नही समझ पाया
तुम भी शायद मुझसे उतनी ही अनजान हो
पर मैंने आन्सुवों को देखा था एक दिन तुम्हारी आँखों में
जब तुम्हारे बाप ने मुझे तुम्हारा आशिक बुलाया था
पर क्या करूँ मजमून से मजबूर था
पर यह सब शायद उस कैंडी का कमाल था जिसे
हम दोनों खाना चाहते थे
तुम्हे नही मिली तो तुम रो पड़ी
पर में तो एक लड़का था
सो छुपा बेठा
पर अब मुझे भान है
और मेंने रास्ता निकल लिया है
जिन्दा रहने का
पता है अब मैं पुतलों पर विश्वास करता हूँ
क्योंकि उन में जितनी इच्छाएं होती है
उतना ही दिखाते हैं
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Saturday, June 6, 2009
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3 comments:
mast likha hai be paudi
sahi hai paudi.....aakhir tu state level poet ban hi gaya...gr8
- Bhatia Bhaiji
waowwww
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