खड़ा होकर पत्थर के मकान देखता था
तब एक कंक्रीट का मकान मुझे आकर्षित करता था
वो पुराने पत्थर के मकान,
साल और टीन की छप्पर
बारिश में आवाज़ करते थे
तब उनकी शायद आदत हो चली थी
शाम में ढलता सूरज उस बरसात के दिन में
रात तक आंधी ले आता था
जब हम घंटो नाले में बहते पानी को देखा करते थे
खैर अब वहाँ कंक्रीट की पार्किंग है
हमने घर भी तो सी लिए हैं अपने
कुछ ऊँचे टीलों में किले बनाने का रिवाज़ था
कभी लोग लाल रंग के पत्थर का इस्तेमाल करते थे
तो कभी कुछ भूरे और अन्य रंगो का
अब वो किले फीके पड़ने लगे हैं
पर फौज के लिए तब किले नहीं थे
कंक्रीट और टीन और कुछ परिस्थितियो में साल के छोटे बड़े घर थे
कुछ लोग तिरपाल के मकानों में रहते थे,
शायब अब भी रहते हैं
कुछ लोग घास के मकानों में रहते थे,
जो शायद अब भी रहते हैं
हाँ एक मकान था, जो शायद अब भी है
वो सिर्फ टीन का था
फिर मैंने आसमान को लोगों की छत बनते देखा
क्या मकान भी गमगीन होते हैं
रंगो की तरह आप उन्हें देख कर
समझ सकते हैं.. शायद
कुछ मकान जहाँ चेरी के पेड़ थे
और शायद बनफूल और बनफ़शा भी थे
उनमे से ज्यादातर मकान बाहर से खुश
दिखाई पड़ते थे
तब मैं देखता था अलग अलग तरह के मकानों को
फिर लोग कहने लगे
कि कुछ मकानों की
इ म आई लगती है
पर शायद उससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि
लोग मैंने देखा है, चाहे वो कंक्रीट में रहे या घास में
बारिश में भीगने पहुँच हो जाते हैं
3 comments:
Nice
👌 Bohat hi Umda likha hai
Kya baat.... Sirji
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