Monday, August 14, 2017

उद्देश्य की समझ



बात उस दिन की है जब 
जब मैं कुछ पहाडियो के बीच  होकर गुजर रहा था 
ना , वोह पहाड़ियाँ  वोह नहीं थीं जहाँ 
जहाँ मैंने बचपन गुजरा है 
बारिश  अलग अलग फ़वारो में चल रही थी 
ज़्यादातर बदल काले थे 

नयी कोपलें खिल रही थी 
दो पहाडियों के बीच मैं गुजर रहा था 
या शायद मेरे गुजरने का वक़्त हो गया था 

खैर मौसम तो सिर्फ समां बांधने के लिए है 
और मुझे मौसम बयां करते नींद आ रही है 

ऐसे मौसम और एक ख्याल को सोचकर लगा 
लगा के मैं कई जंग  एक साथ जीत सकता हूँ 
यही सोचकर मैं  हमेशा आगे बढ़ता हूँ 
और मैं उस समय यही सोचकर आगे बढ़ा 
की जंग में एक मकसद होता है 
मेरा अस्तित्व मुझे सिर्फ बेवजह रहना सिखाता है 
और मकसद मेरे लिए सिर्फ घातक है 

मकसद उन लोगों के लिए अच्छा है 
जिन्हे उत्पत्ती और उद्देश्य  का ज्ञान है 
मैं निर्मूढ इन बातों से अनजान हूँ 

खैर, इस मौसम में जब मैं जीत  की उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहा था
मैं क्षणभर को भूल गया था कि मैं निरा मूर्ख हूँ
मैं यही समझकर कुछ तर्क करने लगा
मैं तर्क युद्धों में हमेशा हार ही जाता हूँ
और उछाल के आकर्षण में गर्द में मिल जाता हूँ

मैं इस निष्कर्ष पर बार-बार पहुंचता हूँ कि
मुझे ज्ञान की बातें नहीं करनी चाहिए
पर  यह बात भी सीख  गया तो मैं
फिर इस तर्क वितर्क के चक्रव्युह में फँस जाऊँगा
न मुझे  ज्ञान चाहिए न उद्देश्य की समझ   

Tuesday, August 1, 2017

बुनियादी बातें


कुछ बुनियादी बातें मुझे समझ नहीं आती
कुछ बुनियादी सवालो से मैं अनजाना हूँ

बात तब की है जब में कुछ सवाल सोच रहा था
क्योंकि जवाबो की परवाह नहीं मुझे
जवाब मुझे एक निष्कर्ष पर ले जाते हैं 
जो शायद किसी दृष्टिकोण पर बने हैं

सवाल साधारण था, की भ्रष्ट कौन है
जवाब दहला देने वाला था
जनता, जो सबसे ज्यादा पीड़ित है
वही सबसे ज्यादा भ्रष्ट है

भ्रष्ट होना लोगों को गंवांरा नहीं
परन्तु वही अगर विकार में बदल जाए
तो शायद मनुष्य उसे स्वीकार कर लेता है
लालच से, भय से
या किसी अन्य भावना से
अभी भावनाओं पर लिखना मुश्किल है

मैं उन सभी स्मिर्तियों को
अपने मानस पटल से विलुप्त करना चाहता हूँ
जो मुझे जवाब देती है एक दृश्टिकोण से
मुझे सिर्फ सवाल चाहिए, अनकहे,  अनसुलझे