Tuesday, September 22, 2009

जंगली की कहानी

एक जंगली की कहानी सुनाता हूँ
थोडी बड़ी है

जंगल में जहाँ शेर भालू
और चीते रहते हैं
जहाँ कबाड़ भी नही होता
सिर्फ़ घास और पत्थर होते है, वहां
एक जंगली रहा करता था

उस जंगली ने, अकेले ही
उनके साथ रहने की आदत डाल ली

पर अचानक से वो अँधा हो गया
सोचो एक अकेला इंसान
अँधा पर अकेला
और सबसे, सबसे जरूरी जंगली

उसने हाथ से ढूंढ कर कुछ घास खायी
और जब उसके हाथ पर कुछ गर्मी का एहसास हुआ
तो उसने आग की खोज भी कर डाली
पर ऐसे जंगली कम ही तो होते हैं


उसने पत्थर, घास और आग,
और बहुत सारी और चीजे,
जिन पर उसे विश्वास था
कबाड़ को छोड़ कर
क्योंकि जंगल में कबाड़ नही होता
उन्हें जोड़ कर एक टाइम मशीन बनाई

वो फिर उस टाइम मशीन से इंसानों
के बीच आ पहुँचा

पर फितरत से मजबूर वो
जंगली, यहाँ भी ...
क्योंकि उसे सिर्फ़ अपने कायदों
पर विश्वास था
उन भूखे लोगों को
जो सिर्फ़ दिल पर एतबार करते है
या कम से कम दिखाते तो हैं

उन लोगो के ईश्वर को त्याग कर
अंगीठी में कोयला डाल कर
एक स्याह रात में सर्दी में बेठा रहा
सोचता था की उसे किसी ने बताया है की
यहाँ लोग प्यार भी कर सकते हैं

उस भूलावे में वो आ गया
पर वो जंगली फितरत से मजबूर
दिमाग पर ज्यादा भारोसा करता था
यहाँ भी....
हाँ यहाँ भी उसने मजे से जिन्दा
रहने का तरीका निकाला ही लिया

और उन सारे इंसानों से आगे निकल गया
जो कबाड़ में, भगवन में, और प्यार में विश्वास करते थे
पर टाइम मशीन पर नही
क्योंकि टाइम मशीन तो जंगली ने बनाई ना

वो जंगली ना न्यूटन था ना आइनस्टाइन था ना मैं

वो तो बुध, महात्मा गाँधी और मैं थे......

Sunday, September 6, 2009

एक सहर

कुत्तों के शहर में इंसान
कुछ आपके जैसे, बाकी मेरे जैसे

याद रखिये ये एक साम्यवादी कहता है
क्योंकि कुत्तों और इंसानों में सिर्फ़ उसे ही फर्क पता है
अवसरवादी और पर्यावरणविद तो दोनों में
फर्क ही नही जानते

एक बार एक इंसान की लाश को
कुत्तों के एक मशहूर ड्राईवर ने कुचल डाला
उस पर केस चला, लाश को कुचलने का
हाँ, कुत्तों के लिए इंसान तो लाश ही है ना

जज ने कहा, क्या बेटा ज्यादा पिए थे क्या
वो तो कोई नही
पर तुमने लाश को बाकी इंसानों के
खाने के लिए क्यों छोड़ दिया
डर नही लगता सड़ती इंसानों की लाशें देखने में

फिर वो कुत्ता उस लाश के बारे में सोचने लगा

की उस इंसान की अंतडियां बाहर आकर
निशाचरों को निमंत्रण दे रहे थी
वो शायद उनके डिनर का समय था

एक चीले ने धीरे से दाहिने आँख निकली और हवा में ले उडी
तभी एक बिल्ली जिसने पहले खून नही चखा था
ना जाने कहाँ से आई और पेट के ठीक नीचे से अपना
हिस्सा निकाल कर ले गई

असली काम एक नरभक्षी बन्दर ने किया,
जो भूख से बेबस हो कर कपाल को नारियल की
तरह फोड़ने लगा
और फिर जिस पर इंसान को नाज़ है
उसका वही अंग लेकर वहां खाने लगा

पर कुत्तों के समाज में भी तो तिरिष्क्रित कुत्ते
होते ही हैं
एक ऐसी ही कुतिया आई और उसने जो विभत्सता दिखाई
उसे सोच कर वो अपराधी भी दंग रह गया
उसने इंसान के दिल के टुकड़े किए
खून पिया और
और फिर आसमान की तरफ़ देख कर
अपनी ही बोली में रोने लगी

शायद कहती थी की पैगंबर
अपने बाशिंदों को भेज इस इंसान का बचा
शरीर खाने को

आख़िर कुत्तों के समाज में जहाँ
इन्सान रहते हैं
कुछ आपके जैसे, बाकी मेरे जैसे
वहां भी कुत्तो के दिल में भावनाए तो होती ही है

यही सोच कर उस जालिम ड्राईवर ने
सबके सामने कोर्ट में माफ़ी मांगी