Wednesday, November 4, 2020

कुछ मकान

बचपन  में जब में पत्थर के मकान में 
खड़ा होकर पत्थर के मकान देखता था 
तब एक कंक्रीट का मकान मुझे आकर्षित करता था 

वो पुराने पत्थर के मकान,
साल और टीन की छप्पर
बारिश में आवाज़ करते थे 
तब उनकी शायद आदत हो चली थी 

शाम में ढलता सूरज उस बरसात के दिन में 
रात तक आंधी ले आता था 
जब हम घंटो नाले में बहते पानी को देखा करते थे 
खैर अब वहाँ कंक्रीट की पार्किंग है 
हमने घर भी तो सी लिए हैं अपने 

कुछ ऊँचे टीलों में किले बनाने का रिवाज़ था 
कभी लोग लाल रंग के पत्थर का इस्तेमाल करते थे 
तो कभी कुछ भूरे और अन्य रंगो का 
अब वो किले फीके पड़ने लगे हैं 
पर फौज के लिए तब किले नहीं थे 
कंक्रीट और टीन और कुछ परिस्थितियो में साल के छोटे बड़े घर थे 

कुछ लोग तिरपाल के मकानों में रहते थे,
शायब अब भी रहते हैं 
कुछ लोग घास के मकानों में रहते थे, 
जो शायद अब भी रहते हैं 
हाँ एक मकान था, जो शायद अब भी है 
वो सिर्फ टीन का था 
फिर मैंने आसमान को लोगों की छत बनते देखा

क्या मकान भी गमगीन होते हैं 
रंगो की तरह आप उन्हें देख कर
समझ सकते हैं.. शायद  
कुछ मकान जहाँ चेरी के पेड़ थे 
और शायद बनफूल और बनफ़शा भी थे 
उनमे से ज्यादातर मकान बाहर से खुश 
दिखाई पड़ते थे 

तब मैं देखता था अलग अलग तरह के मकानों को 
फिर लोग कहने लगे 
कि कुछ मकानों की 
इ म आई लगती है 
पर शायद उससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि 
लोग मैंने देखा है, चाहे वो कंक्रीट में रहे या घास में 
बारिश में भीगने पहुँच हो जाते हैं  

Tuesday, January 7, 2020

असहमति (Dissent)









शुरू की कुछ रिक्त पंक्तियों के साथ

एक बार, मज़ाक में, मैं एक
दोस्त की ले जाती हुई फाइल पर
चारों कोनो पर स्टेप्लर चलने लगा
सिलने लगा उसे लोहे की पिनो से

मेरा चंचल मन ऐसी हरकते करने को
हमेशा करता है
दूसरों को तंग करने मैं बहुत मजा आता है
लोग इर्रिटेट भी होते हैं

इस बार एक अजीब सा वाकया देखा
एल्वेन बीट्राइस हॉल की एक किताब थी 
द फ्रेंड्स ऑफ वोल्टेयर 
उस  किताब पर एक शख्स 
तीनो कोनो से स्टेपलर लगा रहा था 
क्योंकि एक कोना शायद पहले से सिला था
किताब अपने मूल भाव के आधार पर 
उसे ये स्वतंत्रता देती है 
की वो उस किताब को जलाये 
दरिया में फ़ेंक दे या सुपुर्दे-ए-ख़ाक करे 

पर अजीब तब हुआ 

जब उसकी देखम देख लोगो ने भी 
किताब पर स्टेपलर चलना शुरू कर दिया 
पहले कुछ लोग थे 
फिर अनुयायी 
फिर भीड़ 
और फिर जनता 

हद तो तब हो गयी 

जब लोगों ने, 
उस ना गवार लेखिका 
के  बारे में 
जान्ने वाले लोगों के, 
होठों पर भी 
स्टेप्लर चलने शुरू कर दिए