Friday, August 31, 2018

एक पुराना किस्सा



मेरी आधी उम्र से पुराना किस्सा
न छेड़ फिर ज़ालिम
वो वक़्त जब मैं बुराँस के
पेड़ के नीचे खड़ा  होकर
उनके लिए ललकता था
काफलों के लिए ललचाता था
पैदल चल कर कई किलोमीटर स्कूल जाता था

वह पुराना किस्सा
हंसी आती है अब
ऐसे न जाने कितने किस्से आये
और भूली बिसरी यादें
बनकर रह गए

हाँ पर वह भी एक किस्सा था
जिस किस्से का कोई नाम नहीं होता
वह किस्सा आसमानी काला होता है
पत्ते बहुत हरे हुआ करते थे तब
अब तो सिर्फ पीले  दिखते हैं

मेरे पास एक हरे रंग का
हॉफ स्वेटर भी था
मेरी हिंदी तब अच्छी हुवा करती थी
और ठिठकियाँ लेना मेरा शौक हुआ करता था
हंसी तो अब बेमानी सी लगने लगा है

किस्सा बहुत लबा था
ये किस्सा सारे किस्सों में सबसे
ज्यादा मुश्किल भी था
मुझे पिछले बैंच पर बैठने की
आदत सी पड गयी थी

यह एक आँख मिचोली का खेल था
अक्सर मेरी ही नज़रें
ठिठक जाया करती थी
फिर अठखेलियां  मैंने
कई बार सुनी भी
वह अटखेलियां बहुत सी बातें बताती थी
पर हाँ वह मुझे भृमित भी करती थी

किस्सा इतना पुराना है
की इससे ज्यादा मुझे याद नहीं
या फिर इससे भी ज्यादा
मुश्किल किस्से मुझे सता रहे हैं
ए ज़ालिम, इतना पुराना किस्सा मत छेड़
ये मेरी आधी उम्र से भी ज्यादा पुराना है