Monday, July 25, 2011

एक और सच

एक नन्ही सी लड़की
कुछ फूल लेकर दरगाह पर पहुंची
चाहत के आगे मजबूर थी
पर मजबूरी थी की उसे फूल नहीं मिले

कुछ रंगीन कागजों को मोड़कर
कुछ सुन्दर फूल बनाये थे उसने
फूलों बनाने की सीख उसे शायद
बचपन के किसी दोस्त से मिली है

वो क्या असमंजस में थी?
मन्नत मंगनी है, या बस पूजा करनी है
पता नहीं, फिर भी उसने क्यों
कचरे के ढेर से कुछ कागज़ बीने थे

खुसबू के लिए उसने कुछ अजीब किया
कुछ मील चली भूखी प्यासी
ढेरों मन जब पसीना निकला
तो उसने पसीने से फूलों को भिगो दिया

पीर तो खुश हुव़े क्योंकि
उन्हें प्यार नज़र आया था पसीने में भी
पर कुछ बुत्परास्तों को
नयी चीज़ें रास नहीं आती

लड़की को पहले फर्क नहीं पड़ा
हौसला बहुत है उसमे
यही सोच कर दांव खेल गयी
पर भगवान भी तो गलत हिसाब लगते हैं

पीर ने कुछ कहा उसे, कुछ ऐसा
जो हम सिर्फ दर्द और डर में कहते हैं
पीर ने शर्ते रखी
शर्ते भी बहुत अजीब सी थी

"वक़्त के हर पहर,
सिर्फ तुम्हे मेरा ख्याल होगा
तुम मेरे पास अकेले आओगी
और फूल थोड़े सादे होने चाहिए

मैं सर्वशक्तिमान हूँ, तुम तुछ जीव हो
मैं ऋतू हूँ तुम सिर्फ शीत हो
मैं इच्छित हूँ तुम बेचारी इच्छा हो
मैं तीनो लोकों में हूँ तुम सिर्फ अधर में हो"

ऐसा नहीं की लड़की भी निर्दोष थी
उसने भी अपने सपने और सपनो के सपने
उस दढ़ियल बूढ़े पीर के सामने
बड़ी नजाकत से रखने शुरू किये

आसक्ति का विश्वास से कोई रिश्ता नहीं होता
पर ये बात तो ना पीर समझ पाया था न लड़की
दोंनो को दोनों पर सब कुछ था
विश्वास भी और आसक्ति भी

फिर कुछ धर्मगुरु आये
पर दुनिया में किन्ही भी दो
गुरु का दर्शन एक सा नहीं होता
फिर विवाद शुरू होते हैं

दोनों बेफिक्र रहे
बातें बनती थी फिर बिगड़ जाती थी
कहाँ गड़बड़ हवी किसी को नहीं पता था
फिर कुछ मूर्तियों ने आंसू भी बहाए

पर ये सिलसिले चलते रहते हैं
और ज्यादा बाढ़ में शायद कारवां भी डूब जाए



Sunday, June 26, 2011

हमे नहीं पता

शुरवात थी कुछ इनओर्गानिक फूलों से
वो दौड़ कर लिपट जाना गवाह था मोहब्बत का
इक गाडी वाला जोर से होर्न बजाकर निकल लिया
बोला हटो रस्ते से, ये नैवद्य था

कुछ हज़ार किस और कुछ सर्द दिन
इस बार दिन तनहा नहीं थे
आइना साफ़ था और पूरा भी था
लाशें अब जल चुकी हैं

" कोई तो रोक लो" कहाँ से आया है
पर दिन कभी ख़त्म नहीं हुआ
सादगी अब थोड़ी
बेमानीसी सी लगने लगी थी

उसने मुझे फिर मेहँदी में
मेरा नाम ढूँढने को बोला
पर गहरे गीले हरे रंग की खुसबू में
मैं अपना अस्तित्व खो बैठा

एक रेलिंग पर दो लटके हाथ
एक दुसरे को कचोट रहे थे
वो स्पर्स केवल दोनों का नहीं था
किसी और ने भी उसे महसूस किया था

तभी एक नन्ही लड़की कुछ इतरा के
ऊँगली और उन्गूठे से जीरो बनाकर बोली
दीदी मेहँदी अच्छी लग रही है
पर मतलब कुछ और था उसका

एक खूसट बूढा, जो शायद
उस मासूम लड़की का चाचा था
शकल बना कर देखने लगा
और गुलाबी लड़की हंस पड़ी

कई जबानो में जबानें की गयी
ईमान डोले मगर
शायद फिर ईमान बेईमानी निकले
प्यार में ईमान बेमतलब हैं

कुछ ही तीर तरकश से निकले
बाकी तीर खली गए
तरकश मचलता रहा
और निशाना अटखेलियाँ करता था

एक सुबह आलू पराठे की थी
तो बाकी सिर्फ चाय पर निकल गयी
कुछ समोसे खाए और बाकी भूख, हा !!!!
सोच लो खुसबू और भूख में क्या बड़ा है

एक बुद्ध मंदिर, जो वहां हमेशा था
पर ढलान पर दौड़ना नया था
नाव के चप्पू के साथ मछलियों की अटखेलियाँ
और कुछ नीली चूड़ियों की खनक भी थी

मौसम में मौसिदगी
और कुछ रेशम सी चमक
शायद यह रंग उतरेगा नहीं
और हाँ यह कुछ समय में और गहरा गया है

कौन पानी में देर तक रह सकता है
किसको ठण्ड कम लगती है
कुछ और आज्मयिशे थी
पर साला, फोटोग्राफर बड़ा चालू था

ठंडी बारिश , वो भी रात की
सावन का पहला फवारा साथ में
सर्द आहें, और जुकाम
पर अफ़सोस में खांसी नहीं बाँट पाया

एक नन्ही लड़की रो रही थी
पर शायद रंगीन परी को
उस पर प्यार आ गया, और बोली
में इसे गोद में ले लूं

उछलते हुवे चलकर थोडा
सावधानी बरतनी चाहिए
फिर पीछे से नाम लेकर अगर पुकारे कोई
तो चोर को चुप रहना चाहिए

पर पकडम- पकड़ाई का खेल
केवल चोर पोलिसे ही नहीं खेलते
कुछ लोगों के आशियाने
ज्यादा मचलते हैं, और फिर आग लगती है

चेहरा गुलाबी था, कपडे भी और टोपी भी
गुलाबी ही खरीदे गए
पर हया का रंग कुछ भी हो
वो नीला नहीं होता

चोकलेट ढूँढने की कोशिश थी
पर स्ट्राऔबरी ही मिला,
पर सच बताओ वोह भी
बहुत अच्छा लगा

फिर क्या था, एक किताब में कसमें
या कसमों की किताब, कुछ रुआंसी आँखें
और ज्यादा ही देख लिया है हमने
ज्ञान ज्यादा हो गया अब